उड़ीसा के कांधापाड़ा गांव में आदिवासी परिवार में जन्में पीके महानंदिया अब दुनिया के लिए जाने-माने पेंटर हैं, जिनकी बनायी पेंटिंग्स यूनिसेफ के ग्रीटिंग कार्ड्स और दुनियाभर में लगनेवाले प्रदर्शनियों में लगती हैं. वो स्वीडिश सरकार के कला- संस्कृति विभाग के एडवाइजर हैं. अब स्वीडिश नागरिक हैं, लेकिन 1949 में जन्में इस जन्मजात कलाकार के जीवन के शुरुआती साल कठिनाइयों भरे रहे हैं. वो दलित आदिवासी परिवार में जन्मे. पिता पोस्ट मास्टर की सामान्य नौकरी करते थे. साथ में ज्योतिषी भी थे, जिन्होंने अपने बेटे का भविष्य पहले ही बांच दिया था. उसकी शादी किसी विदेशी और अमीर महिला से होगी, जो व्रश्चिक राशि की होगी, बड़े परिवार के ताल्लुक रखती होगी, जिसका अपना स्टेट होगा, लेकिन ये सब कैसे होगा, इसकी जानकारी पीके महानंदिया को नहीं थी.
बचपन में जब गांव के स्कूल में पढ़ना शुरू किया, तो उन्हें सामान्य बच्चों से अलग बैठाया जाता था, क्योंकि वो आदिवासी दलित परिवार से आते थे. बच्चे उनसे बात नहीं करते थे. बार-बार उन्हें परेशान होना पड़ता था, लेकिन महानंदिया का हाथ रेखा चित्र बनाने में सिद्ध होता चला गया. 1971 में उड़ीसा सरकार ने उनका दाखिला कॉलेज ऑफ आर्ट्स दिल्ली में कराया दिया था, लेकिन परेशानी यहां भी कम नहीं हुई. महानंदिया को कहने को स्कॉलरशिप मिली, लेकिन एक भी पैसा उन तक नहीं पहुंचा, सो उन्होंने लोगों का स्केच बनाकर जीवन यापन शुरू कर दिया. वो दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके में शाम के समय स्केच बनाते थे, जिससे उनका जीवन चल रहा था. कई बार उन्हें सड़क के किनारे ही रहना पड़ता था.
स्कॉलरशिप का पैसा नहीं मिलने से उन्हें फीस देने में भी दिक्कत होती थी, लेकिन किसे पता था कि अछूत महानंदिया की किस्मत बदलनेवाली है. वो कनॉट प्लेस में जिन दिनों स्केच बनाते थे. उसी दौरान सोवियत यूनियन की पहली अंतरिक्ष यात्री वेलेंटिना ट्रास्कोवा भारत के दौरे पर आयीं, जिसका स्केच बनाकर महानंदिया ने भेंट किया, जो अगले दिन के सारे अखबारों में छपा, जिसके बाद महानंदिया की चर्चा पूरे देश में होने लगी. इसी बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के यहां से बुलावा आया, तो महानंदिया प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का स्केच बनाने पहुंचे, जिसके बाद उनकी और चर्चा होने लगी.
बात 1975 की है, जब स्वीडन की छात्रा वॉन शेडिन अपने दोस्तों के साथ गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए भारत आयीं. जब वो कनॉट प्लेस में घूम रहीं थीं, तो सीधे पीके महानंदिया के पास पहुंची और उनसे अपना स्केच बनाने के लिए कहा. कुछ मिनट में महानंदिया ने वॉन शेडिन का स्केच बना दिया, जिससे वो खासी प्रभावित हुईं, इसके बाद वो अगले दिन फिर से स्केच बनवाने के लिए महानंदिया के पास पहुंच गयीं, जिस पर महानंदिया के अपने पिता की भविष्यवाणी याद आयी और उन्होंने वॉन शेडिन के सामने वो बात रखीं और उनसे जानकारी ली, जिस पर सभी चीजें वहीं निकलीं, जो उनके पिता ने बतायी थीं. इसके बाद महानंदिया ने वॉन शेडिन से कहा कि आपके साथ हमारी शादी होगी.
महानंदिया की कही हुई बात वॉन शेडिन के दिल में बैठ गयी और अगले कुछ दिन में ही दोनों की शादी हो गयी. महानंदिया से शादी के कुछ दिन बाद शेडिन का वीजा खत्म हुआ, तो वो आगे की पढ़ाई के लिए वापस स्वीडन लौट गयीं, लेकिन महानंदिया के साथ चिट्ठियों के जरिये संपर्क बना रहा. 1977 में शेडिन की पढ़ाई पूरी हुई, जिसकी जानकारी उन्होंने महानंदिया को दी, जिस पर महानंदिया ने स्वीडन जाने का फैसला कर लिया. कहते हैं कि शेडिन ने उन्हें फ्लाइट की टिकट ऑफर की, लेकिन उन्होंने मना कर दिया.
अपने प्यार से मिलने के लिए उन्होंने एक ऐसा रास्ता चुना, जिसने उनके जद्दोजहद को इतिहास के पन्नों में दर्ज कर दिया. महानंदिया ने दिल्ली में अपना सारा सामान बेंच दिया, जिससे उन्हें तब 12 सौ रुपये मिले. इसके बाद उन्होंने 80 रुपये में सेकेंड हैंड साइकिल खरीदी और स्वीडन के लिए निकल पड़े. लगभग छह माह के संघर्ष भरे रास्ते से वो स्वीडन पहुंच गये, लेकिन अब समस्या ये थी कि उनके पास स्वीडन का वीसा नहीं था, सो इमिग्रेशन अधिकारियों ने उन्हें रोक लिया. उन्होंने अपना मैरेज सार्टिफिकेट दिखाया, लेकिन स्वीडिश अधिकारियों को विश्वास नहीं हो रहा था कि महानंदिया इंडिया से स्वीडन तक ऐसे यात्रा करके आ सकते हैं.
किसी तरह से महानंदिया ने अपनी पत्नी से संपर्क साधा, जिसके बाद उनकी स्वीडन में इंट्री हुई. इसके बाद से उनका जीवन बदल गयी. अब उनकी उम्र 72 साल हो चुकी है. उनके दो बच्चे हैं. वो स्वीडन ही नहीं दुनिया के बड़े चित्रकारों में गिने जाते हैं. 46 सालों ने पत्नी और परिवार के साथ स्वीडन में रह रहे हैं. उन्हें वहां के कला एवं संस्कृति मंत्रालय का सलाहकार बनाया गया है. वो इंडिया आते रहते हैं. 2012 में उड़ीसा के संस्कृित उत्कल यूनिवर्सिटी की ओर से डॉक्टरेट की उपाधि भी दी गयी.